सिंधिया के बगावत से गिरेगी मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार।

त्वरित टिप्पणी,,,,,✍️


 इतिहास के पन्नों पर यदि नजर दौड़ाई जाए तो ऐसे कई दौर आए हैं जब भारतीय राजनीति में कई कद्दावर नेताओं ने अपने दल से अपमानित होकर बगावत की है अपने ही दल में घुटन महसूस कर रहे और आपमान का घूंट पी रहे मध्य प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया किसी परिचय के मोहताज नहीं है कांग्रेस पार्टी ने मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा आगे कर चुनाव लड़ा था चुनाव बाद सबसे बड़े दल के रूप में कांग्रेस पार्टी जीती और बहुमत से पीछे रही और कमलनाथ की सरकार बनी सिंधिया घराने के धुर विरोधी रहे राजनीति के चाणक्य दिग्विजय सिंह के चक्रव्यूह में फसी कांग्रेस की सत्ता कमलनाथ और पर्दे के पीछे से दिग्विजयी आवरण ले चुकी है और गुटबाजी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को हाशिए पर डाल दिए थे पिछले छह माह से ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के कई मुद्दो पर समर्थन और भाजपा नेताओं का सिंधिया प्रेम इस ओर इशारा कर रहा था कि आने वाले दिनों में कुछ ऐसा होगा जिसके परिणाम कांग्रेस को मध्य प्रदेश की सत्ता खोकर चुकानी पड़ेगी ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा का रिस्ता कोई नया नहीं है ग्वालियर के सिंधिया परिवार की सियासत कांग्रेस से शुरू होकर जनसंघ पहुंची थी वर्तमान ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को छोड़कर बाकी सब बीजेपी में हैं। राजमाता विजयराजे सिंधिया चाहती थीं कि उनका पूरा परिवार बीजेपी में ही रहे मध्य प्रदेश की राजनीति के 'महाराज' यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया  बगावत कर चुके हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से चार बार सांसद और केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं ऐसा माना जा रहा है कि वह अपनी दादी विजयराजे सिंधिया के 'सपने' को साकार कर रहे है जनसंघ की संस्थापक सदस्यों में रहीं राजमाता के नाम से मशहूर विजयराजे सिंधिया चाहती थीं कि उनका पूरा परिवार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में लौट आए। आइए आपको बताते हैं कि सिंधिया परिवार और बीजेपी का क्या कनेक्शन है ग्वालियर पर राज करने वाली राजमाता विजयराजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीति की शुरुआत की। वह गुना लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं। सिर्फ 10 साल में ही उनका मोहभंग हो गया और 1967 में वह जनसंघ में चली गईं। विजयराजे सिंधिया की बदौलत ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ मजबूत हुआ और 1971 में इंदिरा गांधी की लहर के बावजूद जनसंघ यहां की तीन सीटें जीतने में कामयाब रहा। खुद विजयराजे सिंधिया भिंड से, अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और विजय राजे सिंधिया के बेटे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया गुना से सांसद बने थे गुना पर सिंधिया परिवार का कब्जा लंबे समय तक रहा। माधवराव सिंधिया सिर्फ 26 साल की उम्र में सांसद चुने गए थे लेकिन वह बहुत दिन तक जनसंघ में नहीं रुके। 1977 में आपातकाल के बाद उनके रास्ते जनसंघ और अपनी मां विजयराजे सिंधिया से अलग हो गए। 1980 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर केंद्रीय मंत्री भी बने वहीं दूसरी तरफ विजयराजे सिंधिया की बेटियों वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया ने भी राजनीति में एंट्री की। 1984 में वसुंधरा राजे बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हुईं। वह कई बार राजस्थान की सीएम भी बन चुकी हैं। उनके बेटे दुष्यंत भी बीजेपी से ही राजस्थान की झालवाड़ सीट से सांसद हैं बीजेपी सरकार में मंत्री बनीं यशोधरा राजे सिंधिया वसुंधरा राजे सिंधिया की बहन यशोधरा 1977 में अमेरिका चली गईं। उनके तीन बच्चे हैं लेकिन राजनीति में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। 1994 में जब यशोधरा भारत लौटीं तो उन्होंने मां की इच्छा के मुताबिक, बीजेपी जॉइन की और 1998 में बीजेपी के ही टिकट पर चुनाव लड़ा। पांच बार विधायक रह चुकी यशोधरा राजे सिंधिया शिवराज सिंह चौहान की सरकार में मंत्री भी रही हैं। जबकि इन सबसे इतर ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता की विरासत संभालते रहे और कांग्रेस के मजबूत नेता बने रहे। 2001 में एक हादसे में माधवराव सिंधिया की मौत हो गई। गुना सीट पर उपचुनाव हुए तो ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद चुने गए। 2002 में पहली जीत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया कभी चुनाव नहीं हारे थे लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें करारा झटका लगा। कभी उनके ही सहयोगी रहे कृष्ण पाल सिंह यादव ने ही सिंधिया को हरा दिया हालात सुधरे नहीं और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सरकार तो बनाई लेकिन बहुत कोशिशों के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया सीएम नहीं बन सके। इसके छह महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में हार सिंधिया के लिए दूसरा बड़ा झटका साबित हुई। सीएम ना बन पाने के बावजूद लगभग 23 विधायक ऐसे हैं, जिन्हें सिधिया के खेमे का माना जाता है। इसमें से छह को मंत्री भी बनाया गया। इन्हीं में से कुछ विधायकों ने कमलनाथ की सरकार को मुश्किल में डाल दिया है।
लोकसभा चुनाव में हार के बाद से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं। बार-बार मांग करने के बावजूद उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष का पद भी नहीं मिला, जिसने आग में घी काम का काम किया है। इसी बीच शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात ने विवाद को और हवा दे दी। हालांकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि वह कांग्रेस कभी नहीं छोड़ने वाले हैं। नवंबर 2019 में कांग्रेस पार्टी के सभी पदों को छोड़कर दबाव बनाने की कोशिश की लेकिन उनकी यह कोशिश भी नाकाम हुई थी एमपी में मचे सियासी हुड़दंग भगदड़ से कांग्रेस सरकार नहीं बचेगी 20 विधायकों के स्तीफे के बाद कांग्रेस अल्पमत में आ गई है और भाजपा पूर्ण बहुमत में भाजपा की सरकार मध्य प्रदेश में बनेगी यह तय है लेकिन इस बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जगह नरेन्द्र सिंह तोमर भी हो सकते हैं शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा के रास्ते केन्द्र में मंत्री बनाया जा सकता है।


                                        विमलेश त्रिपाठी 
                                              संपादक 
                                          विराट वसुंधरा 
                                      भोपाल से प्रकाशित
                               हिंदी दैनिक समाचार पत्र


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