शहरों से लौटे प्रवासी मजदूर एवम् कामगारों के सर्वेक्षण में लगा दीन दयाल सोध संस्थान

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अशोक मिश्रा की कलम से


*शहरों से लौटे प्रवासी मजदूर एवं कामगारों के सर्वेक्षण में लगा दीनदयाल शोध संस्थान*


*गांव के लिए जो आवश्यक हैं उस प्रकार के प्रशिक्षण चलने चाहिए - अभय महाजन*


चित्रकूट 1 मई 2020/ लॉकडाउन का पार्ट-2 अपने अंतिम पड़ाव पर है, लाॅकडाउन हुए 38 दिन गुजर चुके हैं लेकिन मजदूरों एवं कामगारों का पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा। लाॅकडाउन के 21 दिन और फिर 19 दिन के इस सफर में सरकार के लाख इंतजामातों और व्यवस्थाओं के बाद भी खुले आसमान के नीचे रहने वाले इन लोगों को शेल्टर होम की सुविधाएं भी रास नहीं आ रही।
कोरोना महामारी के कारण लाॅकडाउन के चलते आजीविका का संकट खड़ा होने के कारण लाखों प्रवासी मजदूरों के शहरों से अपने गांव-घर वापस लौटने का सिलसिला अभी भी निरंतर जारी है।


पलायन की इस रफ्तार को थामने के लिए मजदूर एवं कामगारों के रिवर्स माइग्रेशन को ध्यान में रखकर भारत रत्न नानाजी देशमुख का प्रकल्प दीनदयाल शोध संस्थान एक ठोस रणनीति बनाने में लगा हुआ है। दीनदयाल शोध संस्थान ने इसके लिए अपने सभी प्रकल्पों के कार्यकर्ताओं को सर्वेक्षण कार्य में लगाया हुआ है। शहरों से लौटे प्रवासी मजदूर एवं कामगारों के सर्वे के लिए एक फॉर्मेट तैयार किया गया है। जिसमें 36 तरह के विभिन्न बिंदुओं को उसमें रखा गया है, उनमें से अधिकांश उनकी आजीविका पर आधारित है।


लाॅकडाउन में रोजाना जगह-जगह जो चित्र देखने को मिल रहे हैं, उस हिसाब से देश के बड़े-बड़े महानगरों में रोजी-रोटी की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्य में काम कर रहे देश भर के लाखों प्रवासी मजदूरों का भविष्य अनिश्चित हो गया है। आपदा बनकर आई कोरोना महामारी ने उनकी सुरक्षा पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। उनके रोजगार एवं नौकरी के रास्ते भी मंद पड़ गए हैं।
ऐसे में एक-एक हजार किलोमीटर दूर दराज महानगरों से मजदूर एवं कामगार अपने परिवार एवं बच्चों की गृहस्थी का बोझ लादकर पैदल ही अपनी मंजिल की ओर चल पड़े हैं। एक-एक हफ्ते या उससे ऊपर की इस अविरल पैदल यात्रा में देश के वो मजबूत कंधे ना रुकने का नाम ले रहे हैं और ना ही थमने का नाम ले रहे हैं। हौसले की इस पैदल उड़ान में लोग भगवान के भरोसे बस चले जा रहे हैं.... चले जा रहे हैं। ना भोजन का ठिकाना, न थकान की शिकन। आगे की उनकी मंजिल उन्हें किस रास्ते पर ले जाएगी पता नहीं, लेकिन अपने गांव-घर पहुंचकर सुकून की लंबी सांस जरूर लेंगे।


उनकी इस पैदल यात्रा में उनके पदवेश भी कहां तक साथ देते। जिनके पास चप्पले थी वो भी दो-तीन दिन के बाद साथ छोड़ दीं। वैशाख के महीने की तपती दोपहरी और साथ में छोटे-छोटे बच्चे, ऐसा मार्मिक दृश्य सोचने पर मजबूर कर देता है कि आजादी के 7 दशकों के बाद भी हम कहां खड़े हुए हैं। 


इन परिस्थितियों में लाॅकडाउन के पश्चात के सामाजिक-आर्थिक परिवेश पर दीनदयाल शोध संस्थान की पहल पर विगत 20 अप्रैल को नीति आयोग के उपाध्यक्ष श्री राजीव कुमार जी के साथ देश भर की 30 प्रमुख संस्थाओं का विमर्श हुआ था । इसमें संस्थान ने शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर हो रहे इस रिवर्स माइग्रेशन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं समग्र अर्थव्यवस्था पर पडने वाले प्रभाव का विषय रखा गया, जिसमें दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव श्री अतुल जैन ने स्थानीय संसाधनों और लोकल टैलेंट को बढ़ावा देने की बात कही थी‌। उस समय हुई वेव वार्ता के ही बिंदुओं के आधार पर दीनदयाल शोध संस्थान के केंद्रीय कार्यालय से सर्वे फॉर्म तैयार किया गया है, जिसके आधार पर चित्रकूट एवं मझगवां जनपद के 141 ग्राम पंचायत स्तर के गांव जिसमें संस्थान के 108 स्वावलंबन केंद्रों के अलावा 33 संपर्कित केंद्र भी हैं, उनमें 600 से अधिक ग्राम आबादिया सम्मिलित हैं। जहां जो भी ग्रामवासी शहरों से लौटकर अपने गांव-घर वापस आए हैं उनका सर्वे डाटा तैयार कर रहा है।


सर्वेक्षण में प्रवासी मजदूर एवं कामगारों से जानकारी में 36 महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जानकारी ली जा रही है। जिसमें उनका परंपरागत हुनर, गांव में कितनी जमीन है, खेती के अलावा अन्य दूसरा साधन, परिवार में जलाऊ लकड़ी काटने का कार्य होता है या नहीं, शहर से कब कैसे एवं किस साधन से लौटे, कहां काम करते थे, मजदूरी कितनी थी, वर्ष में कितने दिन काम मिलता है, शहर में रहकर खर्चे की स्थिति क्या है तथा शहर की सुविधा और गांव का वातावरण के तुलनात्मक अध्ययन के साथ कोरोना महामारी के बाद गांव वापस लौटने पर उनके आगे के कार्य के लिए उनकी मन:स्थिति क्या है। गांव में कार्य करने के लिए कोई प्रशिक्षण लेना चाहते हैं क्या, यदि लेना चाहते हैं तो किस तरह का प्रशिक्षण चाहते हैं। इस प्रकार के कई जीवनोपयोगी प्रश्नों के उत्तरों के साथ दीनदयाल शोध संस्थान के कार्यकर्ता सर्वेक्षण का कार्य पूर्ण कर रहे हैं।


दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव श्री अभय महाजन ने बताया कि श्रद्धेय नानाजी कहते थे कि जहां हम काम करते हैं,अगर वहां कोई भी व्यक्ति भूखा रहता है तो यह हम सबके लिए चिंता की बात है। उनकी कल्पना थी कि गांव का व्यक्ति गांव में ही रहे, काम के लिए उसको गांव से बाहर ना जाना पड़े। गांव के लिए जो आवश्यक है इस प्रकार के प्रशिक्षण चलने चाहिए। इस मामले में नानाजी की एक दम बारीक सोच थी। उन्होंने गांव की हरेक समस्या को मन से महसूस किया। भूत, वर्तमान और भविष्य इन तीनों दृष्टियों की समझ रखने वाले राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख ने ग्रामवासियों की पहल और पुरुषार्थ से ही ग्रामीण विकास की अवधारणा तैयार की, जो परंपरागत और आधुनिक दोनों तरीके से युगानुकूल है। नानाजी कहते थे कि जो युवा पीढ़ी है वही आने वाले समय में समाज निर्माण के सूत्रधार हो सकते हैं।
श्री महाजन ने कहा कि ग्रामीण अंचल स्थानीय तथा प्राकृतिक संसाधनों से भरा हुआ है। प्राकृतिक संसाधन का विधिवत उपयोग समझाएं जाने के बाद गांव में स्वरोजगार के बड़े अवसर तैयार किए जा सकते हैं।
 
सर्वेक्षण में जो जानकारी निकल कर आ रही है, उसमें आधे से ज्यादा लोग काम के लिए अब पुनः बाहर नहीं जाना चाह रहे हैं। इसलिए उनको अब गांव में ही रोजगार के अवसर तलाशने होंगे।


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