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अशोक मिश्रा की कलम से
*!!.राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता थमी मुख्यमंत्री को शक्ति देंगे ये पाँच खुलकर सरकार चला पाएंगे शिवराज: डॉ. नरोत्तम मिश्रा, गोविंद सिंह राजपूत, मीना सिंह, कमल पटेल एवं तुलसी सिलावट बने मंत्री.!!*
करीब एक महीने के इंतजार के बाद आखिरकार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट का गठन हो ही गया है। राजभवन में आयोजित 13 मिनट के समारोह में प्रदेश के पॉच मंत्रियों ने शपथ ली। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि मुख्यमंत्री ने 230 सीट वाली विधानसभा में महज पांच सदस्यों की छोटी कैबिनेट बनाई ही क्यों ? क्या यह शिवराज की पसंद थी या फिर सत्ता की मजबूरी ? लोग तो यहां तक कहने लगे कि सिंधिया के सामने बौने पड़ गए शिवराज l मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन ने राजभवन में आयोजित सादे समारोह में प्रदेश सरकार के मंत्रियों के शपथ दिलाई। शपथ में जहां पांच के अरमान पूरे हो गए तो अनेकों के अरमानों पर पानी फिर गया। मंत्रिमंडल में गठन में 40 फीसदी सिंधिया समर्थकों के जगह मिली है। जबकि भाजपा के वरिष्ठ नेता मंत्री पद की राह देखते ही रह गए ।
*इन्होंने ली मंत्री पद की शपथ*
भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, कमल पटेल एवं मीना सिंह के साथ सिंधिया गुट के तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत ने मंत्री पद की शपथ ली।
सभी को साधने की कोशिश
कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए भाजपा ने हर स्तर पर अपनी तैयारी की थी। ऐसे में अब सभी गुटों को साथ लेकर चलना उसकी मजबूरी है। इसी के चलते सभी को साधने की कोशिश की गई है। मंत्रिमंडल में जातिगत समीकरणों को भी साधा गया है। स्वर्ण समाज से डॉ. नरोत्तम मिश्रा व गोविंद सिंह राजपूत, आदिवासी वर्ग से मीना सिंह, ओबीसी से कमल पटेल और अनुसूचित जति वर्ग से तुलसी सिलावट को रखा गया है। हालांकि मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए हर गुट के लिए लोग उतावले हो रहे थे। लेकिन मुख्यमंत्री के लिए सभी को संतुष्ट कर पाना संभव नहीं था। ऐसे में पार्टी आलाकमान ने बीच का रास्ता निकाला और सभी गुटों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व देकर उन्हें फिलहाल साधने की कोशिश की गई है।
*सिंधिया के सामने कमजोर पड़े शिवराज*
मुख्यमंत्री शिवराज की कैबिनेट गठन में चली नहीं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। जिस तरीके कमल पटेल को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है वह चौंकाने वाला नाम है। कमल पटेल को पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के गुट का माना जाता है। वे पहले भी शिवराज सरकार में मंत्री रह चुके हैं और समय -समय पर कई मुद्दों पर सरकार का विरोध भी करते रहे हैं। जिससे शिवराज को फजीहत का सामना करना पड़ा था। शिवराज के गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह को कैबिनेट में शामिल करने के प्रयास में रहे लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके। नरोत्तम की अनदेखी का सवाल ही नहीं उठता और सिंधिया गुट के लोगों को लेना उनकी मजबूरी थी। कैबिनेट की नई तस्वीर देखने के बाद सवाल फिर उठने लगे हैं कि क्या मंत्रियों के मामले में उनकी पसंद और नापसंद का ख्याल नहीं रखा गया या फिर उनकी चली ही नहीं ?