कोरोना लाकडाउन कितना नफा कितना नुकसान दैनिक विराट वसुंधरा के लिए रामानंद शुक्ल। 

कोरोना लाकडाउन कितना नफा कितना नुकसान
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दैनिक विराट वसुंधरा के लिए रामानंद शुक्ल
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   विश्वव्यापी कोरोना महामारी ने देश में भूचाल ला दिया ।भारत ही नहीं समूचा विश्व इस भीषण महामारी की चपेट में है , भारत सहित समूचे विश्व में लाकडाउन है जिसके चलते मानो जिंदगियां थम सी गई हैं ।लोगों की जीवन शैली , रेल बंद हवाई यात्रा बंद , बसें बंद टैक्सी बंद , रिक्शा बंद स्वयं के भी ऐसोआराम के वाहन बंद , यहां तक कि लोगों की हर जरूरतें ब्लॉक डाउन  ! फिर भी बेरहम कोरोनावायरस थमने का नाम नहीं ले रहा । मौतों की रफ्तार इतनी तेज है कि वह मासूम जिंदगियों से लेकर हर आयु वर्ग को अपनी आगोश में लेती जा रही है , अमीर गरीब में कोई भेद नहीं है।
      देशव्यापी लाकबंदी जैसे कड़े फैसलों से समूचा देश मानो थम सा गया है। रोजी रोजगार की तलाश में देश के एक छोर से दूसरे छोर की लंबी दूरी को नाप कर कमाने खाने गए लोग, छात्र, डॉक्टर ,इंजीनियर, ड्राइवर, मजदूर, व्यवसायी जो जहां था वही फंसकर रह गया। इस बीच अपनी जन्मभूमि पहुंचने को आतुर वे परदेश में जल बिन मछली की भांति तड़पने लगे और देश के एक छोर से दूसरे छोर की दूरी अपने पैरों से चलकर नापने चल पड़े अनंत और दुश्कर मंजिल की ओर °°°°°°°।    इस बीच रास्ते में कहीं 1 जून की रोटी मिली तो कहीं पानी पी पीकर सड़क , रेल की पटरियों को ही मार्ग बनाकर , पगडंडी , खेत की मेड़ों के सहारे तो कहीं पहाड़ों की चोटियों को लांग कर वियावान जंगलों को पार कर भटकते रहे और भागते रहे ,भागते रहे ••• ठीक उसी तरह जैसे हिरण के नन्हें शावक का शिकार करने को आतुर कोई भूखाशेर पीछा कर रहा हो। कोरोनावायरस भी इस भूंखे  शेर से भी अधिक खतरनाक लग रहा है।
    लेकिन इन सबके बीच नफा नुकसान का आंकलन किया जाए तो लाकबंदी ने एक ओर कोरोना जैसी महामारी से मानव जीवन को सुरक्षा प्रदान करते हुए अन्य कई लाभ भी दिए हमने आधुनिकता की दौड़ में प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करते हुए मात्र लाभ और लाभ के बारे में ही सोचा , यह कभी नहीं सोचा कि प्रकृति के संतुलन का हम सर्वनाश करते जा रहे हैं , और मानव जीवन शैली को भी बदलते जा रहे हैं । इतर देशों नें तो निरामिष भोजन पद्धति को ही बेहतर मान लिया  कदाचित उनकी इसी भूल ने इस लाइलाज बीमारी को जन्म भी दिया।
           देशव्यापी लाकबंदी-1 लाकबंदी -2 के बीच भले ही सारी आर्थिक गतिविधियां व उत्पादनों के ठप होने से आर्थिक मंदी समेत अन्य नुकसान बहुत हुए हों किंतु यदि इसके दूसरे पहलुओं पर गौर किया जाए तो भले ही मौत के डर से ही सही किंतु हमने अनुशासन में रहना तो सीखा । कुछ अराजक लोगों , समुदायों को छोड़ दिया जाए तो हमने हमारे प्रधानमंत्री के एक इशारे पर , उनके हर निर्देशों पर हमने किसी आज्ञाकारी पुत्र की भांति चलने का मार्ग तो अपनाया । सरकार ने भी हर पल देश की आवाम की मदद की । कुछ अपवादों को यदि छोड़ दिया जाए तो सरकार भी देश के 130 करोड़ जनता के साथ पल - प्रतिपल किसी हमशाया की भांति खड़ी रही।
      देश के वह पर्यावरण में निसंदेह इतना सुधार हुआ इतना सुधार हुआ कि बीते कि 40 वर्षों के स्तर पर सारे देश का समूचा वायुमंडल जा खड़ा हुआ स्वच्छ हवा मिलने लगी यहां तक कि देश के नदी नाले जो औद्योगिक प्रदूषण से अपना अस्तित्व खोते जा रहे थे वह निर्मल से निर्मल तम होते गए हमारे देश के कुरौना वायरस से अब तक हुई कुल मौतें बहुत ही कम जान पड़ती हैं यदि देशभर में कोई दुर्घटना जनित मौतों से इनकी तुलना की जाए। महीने भर की मौतों  की संख्या का यदि अनुमान लगाया जाए तो हम आश्चर्यचकित रह जाएंगे।


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