शंका कैसे पैदा होती है

अशोक मिश्रा की कलम से


*शुभ प्रभात*
*छोटी छोटी तीन कहानी शंका कैसे पैदा होती है*


एक सहेली ने दूसरी सहेली से पूछा:-  बच्चा पैदा होने की खुशी में तुम्हारे पति ने तुम्हें क्या तोहफा दिया ?
सहेली ने कहा - कुछ भी नहीं! 
उसने सवाल करते हुए पूछा कि क्या ये अच्छी बात है ? 
क्या उस की नज़र में तुम्हारी कोई कीमत नहीं ?
*लफ्ज़ों का ये ज़हरीला बम गिरा कर वह सहेली दूसरी सहेली को अपनी फिक्र में छोड़कर चलती बनी।।*
थोड़ी देर बाद शाम के वक्त उसका पति घर आया और पत्नी का मुंह लटका हुआ पाया।। 
फिर दोनों में झगड़ा हुआ।।
एक दूसरे को लानतें भेजी।। 
मारपीट हुई, और आखिर पति पत्नी में तलाक हो गया।।
जानते हैं प्रॉब्लम की शुरुआत कहां से हुई ? उस फिजूल जुमले से जो उसका हालचाल जानने आई सहेली ने कहा था।।
रवि ने अपने जिगरी दोस्त पवन से पूछा:- तुम कहां काम करते हो?
पवन- फला दुकान में।। 
रवि- कितनी तनख्वाह देता है मालिक?
पवन-18 हजार।।
रवि-18000 रुपये बस, *तुम्हारी जिंदगी कैसे कटती है इतने पैसों में ?*
पवन- (गहरी सांस खींचते हुए)- बस यार क्या बताऊं।।
मीटिंग खत्म हुई, कुछ दिनों के बाद पवन अब अपने काम से बेरूखा हो गया।। और तनख्वाह बढ़ाने की डिमांड कर दी।। जिसे मालिक ने रद्द कर दिया।। पवन ने जॉब छोड़ दी और बेरोजगार हो गया।। पहले उसके पास काम था अब काम नहीं रहा।।
*एक साहब ने एक शख्स से कहा जो अपने बेटे बहु के साथ रहता था।। आज कल कहा रहते हो बुजुर्ग ने कहा बेटे बहु के साथ,,शख्स ने फिर सवाल किया बेटे बहु सेवा करते है,,बुजुर्ग ने कहा हा,, बहु ज्यादा करती है बेटा काम काज में व्यस्त ज्यादा रहने की वजह से कम कर पाता है शख्स ने फिर सवाल किया क्या उसे तुमसे मोहब्बत नहीं रही?* 
बाप ने कहा बेटा ज्यादा व्यस्त रहता है, उसका काम का शेड्यूल बहुत सख्त है।। उसके बीवी बच्चे हैं, उसे बहुत कम वक्त मिलता है।।
पहला आदमी बोला- वाह!! *यह क्या बात हुई, तुमने उसे पाला-पोसा उसकी हर ख्वाहिश पूरी की, अब उसको बुढ़ापे में व्यस्तता की वजह से मिलने का वक्त नहीं मिलता है।। तो यह ना मिलने का बहाना है।।*
इस बातचीत के बाद बाप के दिल में बेटे के प्रति शंका पैदा हो गई।। बेटा जब भी ऑफिस से घर आता वो ये ही सोचता रहता कि उसके पास सबके लिए वक्त है सिवाय मेरे।।
याद रखिए जुबान से निकले शब्द दूसरे पर बड़ा गहरा असर डाल देते हैं।। बेशक कुछ लोगों की जुबानों से शैतानी बोल निकलते हैं।। हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बहुत से सवाल हमें बहुत मासूम लगते हैं।।*
जैसे-
तुमने यह क्यों नहीं खरीदा।।
तुम्हारे पास यह क्यों नहीं है।।
तुम इस शख्स के साथ पूरी जिंदगी कैसे चल सकती हो।।
तुम उसे कैसे मान सकते हो।।
वगैरा वगैरा।।
इस तरह के बेमतलबी फिजूल के सवाल नादानी में या बिना मकसद के हम पूछ बैठते हैं।।
जबकि हम यह भूल जाते हैं कि हमारे ये सवाल सुनने वाले के दिल में 
नफरत या मोहब्बत का कौन सा बीज बो रहे हैं।।
आज के दौर में हमारे इर्द-गिर्द, समाज या घरों में जो टेंशन टाइट होती जा रही है, उनकी जड़ तक जाया जाए तो अक्सर उसके पीछे किसी और का हाथ होता है।। 
वो ये नहीं जानते कि नादानी में या जानबूझकर बोले जाने वाले जुमले किसी की ज़िंदगी को तबाह कर सकते हैं।।
ऐसी हवा फैलाने वाले हम ना बनें।। 
*लोगों के घरों में अंधे बनकर जाओ और वहां से गूंगे बनकर निकलो।।*
*न चादर बड़ी कीजिये,न  ख्वाहिशें दफन कीजिये,चार   दिन की ज़िन्दगी है,बस चैन   से बसर कीजिये,न परेशांन   किसी को कीजिये,न हैरान किसी को कीजिये,कोई लाख   गलत भी बोले,बस 😇 मुस्कुरा   कर छोड़ दीजिये।*
*न रूठा किसी से कीजिये,न  झूठा वादा किसी से कीजिये,   कुछ फुरसत के पल निकालिये,कभी खुद से भी   मिला कीजिये।*


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